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धर्म की रक्षा का प्रश्न, परन्तु श्रेष्ठजन दमनचक्र: पं. मांगेराम शर्मा जी की कलम से (21 अप्रैल, 1988)

धर्म की रक्षा का प्रश्न, परन्तु श्रेष्ठजन दमनचक्र: पं. मांगेराम शर्मा जी की कलम से (21 अप्रैल, 1988)

एक समय था, महर्षि वशिष्ठ और विश्वामित्र, जमदग्नि और अंगिरा, गौतम और कण्व के आश्रमों से निकलती दिव्य ऋचाओं की ध्वनि आर्यों की उत्कृष्ट आत्मा को शब्दों में व्यक्त कर रही थी। इस भूमि में जो राजा लोक सत्ता भोगते थे वे चक्रवर्ती, जो तप करते थें वे ऋषि और जिन्होंने ऋचाओं का उच्चारण किया था… View more